Wednesday, May 23, 2018

एटलास साईकिल पर योग- यात्रा: भाग १ प्रस्तावना

प्रस्तावना
 

नमस्ते!

हाल ही में मैने और एक साईकिल यात्रा पूरी की| यह योग प्रसार हेतु साईकिल यात्रा थी जिसमें लगभग ५९५ किलोमीटर तक साईकिल चलाई और लगभग योजना के अनुसार ही यह यात्रा पूरी हुई (सिर्फ कुछ कारण से एक पड़ाव कम हुआ)| मध्य महाराष्ट्र के परभणी जिले में कार्यरत 'निरामय योग प्रसार एवम् अनुसंधान संस्था' तथा उसके कार्य का विस्तार को ले कर यह यात्रा थी| मध्य महाराष्ट्र के परभणी, जालना, औरंगाबाद एवम् बुलढाणा जिलों में काम करनेवाले योग- कार्यकर्ता, योग अध्यापक इनसे इस यात्रा में मिलना हुआ| अब इस यात्रा का विवरण लिखना शुरू कर रहा हूँ|

पहली बात तो यह है कि किसी‌ भी विषय का प्रसार करना हो, तो कई मुद्दे उपस्थित होते हैं| सीधा प्रसार हमेशा ही कारगर साबित नही होता है| कई लोग बार बार आग्रह करने पर उस चीज़ की तरफ जा सकते हैं, पर यह सभी के लिए लागू नही होता है| मेरा अपना उदाहरण यही है कि जब जब मुझे किसी चीज़ के बारे में आग्रह किया गया, अक्सर मैने उससे दूर ही गया| इसलिए योग प्रसार करना इतनी सरल बात नही है| मेरा विश्वास प्रत्यक्ष प्रसार के बजाय अप्रत्यक्ष प्रसार में हैं| किसी को योग कीजिए, ऐसा बताने के बजाय खुद उसे करते रहने में है| और इस यात्रा में भी कुछ ऐसा ही हुआ| जैसे यह एक साईकिल यात्रा है और साईकिल सन्देश और साईकिल प्रसार भी इसका एक अन्दरूनी पहलू है| मैने किसी से भी नही कहा कि साईकिल चलाईए, लेकीन हर जगह कुछ लोग अपने आप साईकिल चलाते दिखे! इसके साथ हर जगह पे योग- साधकों से बहुत अच्छा मिलना हुआ| योग का एक अर्थ जोड़ है और इस पूरी यात्रा में भी कई लोगों‌ से जुड़ना हुआ| हर गाँव में कार्यकर्ताओं की टीम में भी नए लोग कहीं कहीं जुड गए| यह साईकिल यात्रा उनके जुड़ने के लिए एक माध्यम बनी| अप्रत्यक्ष और अपरोक्ष रूप से योग को बढ़ावा मिला| एक साईकिल पर आए यात्री से मिल कर कार्य करनेवाले कार्यकर्ताओं का भी हौसला बढ़ा| इसका श्रेय साईकिल को जाता है, उसमें होनेवाले इनोवेशन को जाता है| 



इस साईकिल पर तैयारी करते हुए!

प्रसार के बारे में दूसरी चीज़ यह है कि किसी ने मुझे यह भी कहा कि अगर योग प्रसार करना चाहते हो, तो उसके लिए साईकिल क्यों चलाते हो, सीधा योग प्रसार ही क्यों नही करते? बात तो सही है| जरूर एक अर्थ में महत्त्वपूर्ण है| कई लोगों की ऐसी सोच होगी और वे अपने स्थान पर ठीक भी हैं| लेकीन मेरा मानना है कि किसी भी विषय को आगे ले जाने के कई तरीके होते हैं और होने चाहिए| अलग अलग ढंग से विषय लोगों तक पहुँचना चाहिए| अलग अलग माध्यम और साधन ले कर विषय को लोगों के बीच ले जाना चाहिए| और हर किसी की अपनी‌ रूचि भी होती है| और दूसरी बात यह कि मैने साईकिल चलाना योग करने के बहुत निकट पाया है| इसके बारे में आगे विस्तार से बात करूँगा| खैर|

... ११ मई को परभणी से यात्रा शुरू करने के पहले कई दिनों तक निरामय संस्था के कार्यकर्ताओं के साथ चर्चा होती रही| धीरे धीरे रूट तय होता गया| सबसे सम्पर्क हो गया| मेरे लिए यह पहला प्रयोग है जब मै किसी संस्था और किसी मुद्दे को ले कर साईकिल करूँगा| मेरी पहली ऐसी साईकिल यात्रा है जिसमें मै सिर्फ साईकिलिंग नही करूँगा वरन् उसके साथ और भी कुछ करने का प्रयास करूँगा| सोलो साईकिलिंग होने पर भी इसमें हर पड़ाव पर कई लोग मेरे साथ होंगे| सब तरह की तैयारी की| मेरी पीछली साईकिल यात्रा के टी- शर्टस और बैनर इस बार भी काम आएंगे| संस्था की तरफ से भी कुछ तैयारी की गई| इसी की तैयारी के तहत पुरानी एटलास साईकिल पर कुछ प्रैक्टीस राईडस की| तब अहसास हो गया था कि इस साईकिल पर आसानी से ४ घण्टों में ५५- ६० किलोमीटर जाया जा सकता है| हर रोज सुबह साढ़े पाँच बजे से ज्यादा से ज्यादा साढ़े दस- ग्यारह बजे तक चार- पाँच घण्टे साईकिल चलाऊँगा ऐसा तय किया| गर्मी के दिन है और मेरी यात्रा में मुझे सड़कें भी बहुत साधारण या निम्न गुणवत्ता की मिलेंगी| इसलिए साईकिल की मरम्मत की और उसमें नए टायर और ट्युब डाले| पंक्चर रोधी टायर डाले| जब जाने के एक दिन पहले १० मई को छोटी राईड की, तो साईकिल बहुत हेवी लगी| ऐसा नए टायर्स से कुछ दिनों तक होगा| फिर टायर्स एडजस्ट हो जाएंगे ऐसा खुद को समझा लिया|

१० मई की रात को बिल्कुल भी नीन्द नही आई| मैने जितनी साईकिल चलाई है, उसे देखते हुए मेरे लिए यह कोई कठिन चुनौतिभरी मुहीम तो नही है| फिर भी एक तरह का नयापन जरूर है| और सुबह जल्द उठ कर निकलना है| शायद इसी कारण से नीन्द लगी ही नही| ऐसा तब भी हुआ था जब मैने अर्ध मॅरेथॉन में हिस्सा लिया था| इसका कारण शायद यह होगा कि सुबह इतका बड़ा अवसर- इतना बड़ा इवंट है तो उससे मन अत्यधिक सजग हो जाता है- कॉन्शस हो जाता है| और इतनी अधिक सजगता हो, तो नीन्द नही आती है| क्यों कि नीन्द के लिए तो सजगता कम चाहिए| सजगता या होश भी एक तरह की ऊर्जा है| जब किसी कारण- किसी ऐसी इवंट के कारण या किसी दु:खद घटना के कारण- हम बहुत ज्यादा सजग हो जाते हैं, तो नीन्द असम्भव सी हो जाती है| सजगता भी एक तरह की ऊर्जा है और अगर यह बहुत ज्यादा हो गई, तो नीन्द नही आती है| और बहुत कम भी हुई, तो भी नीन्द नही आती है| जैसे बहुत ज्यादा थकने पर नीन्द नही आती है| यह इस बात से भी समझा जा सकता है कि हमारे पास कुछ हद तक ही सजगता को सहने की क्षमता होती है| जैसे बहुत से लोग स्टेज पर जा कर भाषण करने में‌ समर्थ नही होते हैं| क्यों कि स्टेज पर जाने पर बहुत से लोगों की आँखें हमें देखती हैं; सजगता अत्यधिक बढ़ जाती है| या छोटे बच्चे पर ध्यान देना उसका एक तरह का पोषण होता है| साईकिल चलाते समय कई बार यह भी देखा है कि बहुत थके हालात में सामने से आने- जानेवालों की तरफ देखना भी कठिन हो जाता है (देखने से भी ऊर्जा व्यय होती है)| एक बार तो तोरणमाल पर साईकिल चलाते समय थकान से सजगता इतनी कम हुई थी कि तोरणमाल है या कोई और हिल स्टेशन इसका होश भी नही रहा था| खैर| लेकीन इस वजह से नीन्द नही लगी| जैसे सामने कोई बहुत बड़ा दिया रखा हो तो अन्धेरा नही हो सकेगा|

११ मई की सुबह हुई| बहुत थोड़ी नीन्द हुई है| फिर भी जल्द तैयार हुआ| पहले कई साईकिल यात्राएँ की है इसलिए सामान बान्धना, कम से कम सामान साथ रखना, आहार आदि का अभ्यास हुआ है| समय पर निरामय संस्था में पहुँच गया| सुबह होने के पहले अन्धेरे में ही कई लोग मुझे विदा करने के लिए आए हैं! उनकी शुभकामनाओं से अच्छा लगा| अन्धेरा हटते हटते साईकिल चलानी शुरू‌ की| एक नई यात्रा का आगाज़ हुआ| यह योग- यात्रा होगी, साईकिल यात्रा तो होगी ही, लेकीन बाहर के साथ भीतर की भी यात्रा होगी| पहले दिन की चर्चा अगले लेख में करते हैं|


 

अगर आप चाहे तो इस कार्य से जुड़ सकते हैं| कई प्रकार से इस प्रक्रिया में सम्मीलित हो सकते हैं| अगर आप मध्य महाराष्ट्र में रहते हैं, तो यह काम देख सकते हैं; उनका हौसला बढ़ा सकते हैं| आप कहीं दूर रहते हो, तो भी आप निरामय संस्था की वेबसाईट देख सकते हैं; उस वेबसाईट पर चलनेवाली ॐ ध्वनि आपके ध्यान के लिए सहयोगी होगी| वेबसाईट पर दिए कई लेख भी आप पढ़ सकते हैं| और आप अगर कहीं दूर हो और आपको यह विचार ठीक लगे तो आप योगाभ्यास कर सकते हैं या कोई भी व्यायाम की एक्टिविटी कर सकते हैं; जो योग कर रहे हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं; दूसरों को योग के बारे में बता सकते हैं; आपके इलाके में काम करनेवाली योग- संस्था की जानकारी दूसरों को दे सकते हैं; उनके कार्य में सहभाग ले सकते हैं|

निरामय संस्था को किसी रूप से आर्थिक सहायता की अपेक्षा नही है| लेकीन अगर आपको संस्था को कुछ सहायता करनी हो, आपको कुछ 'योग- दान' देना हो, तो आप संस्था द्वारा प्रकाशित ३५ किताबों में से कुछ किताब या बूक सेटस खरीद सकते हैं या किसे ऐसे किताब गिफ्ट भी कर सकते हैं| निरामय द्वारा प्रकाशित किताबों की एक अनुठी बात यह है कि कई योग- परंपराओं का अध्ययन कर और हर जगह से कुछ सार निचोड़ कर ये किताबें बनाईं गई हैं| आप इन्हे संस्था की वेबसाईट द्वारा खरीद सकते हैं| निरामय संस्था की वेबसाईट- http://www.niramayyogparbhani.org/ इसके अलावा भी आप इस प्रक्रिया से जुड़ सकते हैं| आप यह पोस्ट शेअर कर सकते हैं| निरायम की वेबसाईट के लेख पढ़ सकते हैं| इस कार्य को ले कर आपके सुझाव भी दे सकते हैं| बहुत बहुत धन्यवाद!

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-05-2018) को "अक्षर बड़े अनूप" (चर्चा अंक-2981) (चर्चा अंक 2731) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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