Tuesday, June 28, 2016

प्रकृति, पर्यावरण और हम १०: कुछ कड़वे प्रश्न और कुछ कड़वे उत्तर


प्रकृति, पर्यावरण और हम ५: पानीवाले बाबा: राजेंद्रसिंह राणा

प्रकृति, पर्यावरण और हम ६: फॉरेस्ट मॅन: जादव पायेंग

प्रकृति, पर्यावरण और हम ७: कुछ अनाम पर्यावरण प्रेमी!

प्रकृति, पर्यावरण और हम ८: इस्राएल का जल- संवर्धन
 
प्रकृति, पर्यावरण और हम ९: दुनिया के प्रमुख देशों में पर्यावरण की स्थिति


कुछ कड़वे प्रश्न और कुछ कड़वे उत्तर

पर्यावरण के सम्बन्ध में चर्चा करते हुए हमने कई पहलू देखे| वन, पानी और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संवर्धन के कई प्रयासों पर संक्षेप में चर्चा भी की| कई व्यक्ति, गाँव तथा संस्थान इस दिशा में अच्छा कार्य कर रहे हैं| लेकिन जब हम इस सारे विषय को इकठ्ठा देखते हैं, तो हमारे सामने कई अप्रिय प्रश्न उपस्थित होते हैं| पीछले लेख में जैसे बात की थी कि एक पेड़ के काटने का मार्केट में मिलनेवाला दाम एक पेड़ लगाने के लाभ से कई गुणा अधिक है| इसलिए हम चाहे कितने भी पेड़ लगाए या वन संवर्धन करें, उनके टूटने की गति उससे अधिक ही रहेगी| इस लेख में ऐसे ही कुछ कड़वे प्रश्न और कड़वे उत्तरों की बात करते हैं|

जैसा कि हमने देखा आज जो देश पर्यावरण के सम्बन्ध में अग्रणि हैं वे ऐसे ही देश हैं जहाँ मानवीय बर्डन प्रकृति पर कम है| अर्थात् अपार प्राकृतिक सम्पदावाले कम आबादी के देश| इसी तथ्य में एक अर्थ में इस पूरी समस्या की जड़ और उसका समाधान भी है| हमारी आबादी और उसका प्रबन्धन कैसे करना यह एक बहुत अप्रिय प्रश्न है| और उल्लेखनीय है कि कोई इस पर बात भी करना नही चाहता है| उल्टा आज तो हर समाज और हर राजनेता अपने अपने समाज के लोगों की संख्या बढ़ाने पर ही जोर दे रहे हैं| लेकिन अब स्थिति बहुत ही विपरित हो रही है| एक समय में 'हम दो हमारे दो' या 'हम दो हमारा एक' ऐसी बातें ठीक थी| आज के समय में प्रकृति पर इन्सान का बर्डन और इन्सान का इन्सान पर होनेवाला बर्डन देखते हुए वस्तुत: आज ऐसे कपल्स का सम्मान किया जाना चाहिए जो माता- पिता नही बनना चाहते हैं| सिर्फ सम्मान नही, सरकार द्वारा ऐसे लोगों के लिए इन्सेन्टिव भी शुरू किया जाना चाहिए| क्यों कि अगर इसी क्रम से आबादी बढ़ती रही तो आनेवाली पिढियों को कुछ भी नही मिलेगा| एक ज़माने में जैसे आक्रमक ताकतें सारी दुनिया पर आक्रमण करती थी, उसी तरह इन्सान पूरी धरती पर आक्रमण करता जा रहा है| इसलिए अगर कुछ ठोस परिवर्तन लाना हो तो इन्सान के द्वारा प्रकृति पर हो रहे आक्रमण को रोकना ही होगा और उसके लिए जनसंख्या कम करना एक बेहद अहम पहलू है|



लेकिन आज सरकार ऐसा काम कभी नही करेगी| क्यों कि प्रजासत्ता की बुनियाद ही ऐसी है कि सरकार व्यापक जन समूह के विपरित जा ही नही सकती है| लोगों को जो पसन्द न हो या लोगों को जो बात समझ में नही आती हैं, ऐसी कोई बात सरकार उठा भी नही सकता है| जैसे हमारे कई महापुरुषों के जीवनों में काफी दोष होते हैं| जहाँ गुण होते हैं, वहाँ दोष भी होंगे ही| जैसे गाँधीजी महान थे ही; लेकिन उन्होने उनके बेटे हरिदास के साथ जो व्यवहार किया वह बिल्कुल उचित नही था| गाँधीजी तो कहते थे कि हिन्दु- मुस्लीम भाई भाई और गीता माता तो कुरआन पिता| लेकिन जब उनके बेटे ने इस्लाम धर्म अपनाया, तो उन्होने उसे घर से निकाल दिया| कोई भी गान्धीवादी इसे कभी नही कहेगा| ऐसी कई सारी बातें है जो की सरकार कभी कह नही सकती है| आज देखा जाए तो हमारे देश के कुछ स्थानों पर पर्यावरण पर अत्यधिक तनाव है| जैसे सभी बड़े शहरों में इन्सान का प्रकृति पर अत्यधिक बर्डन है| और इन्सान का भी इन्सान पर अत्यधिक तनाव है| इसलिए सरकार अगर वास्तविक लोगों की भलाई चाहती है तो उसे लोगों से कहना चाहिए कि अब बड़े शहरों में आबादी पर पाबन्दी होगी| इसलिए अब वहाँ कोई बसने नही आ पाएगा| लेकिन सरकार ऐसा कह ही नही सकती है| क्यों कि तुरन्त विभिन्न सामाजिक संस्थान; मानव अधिकार का आन्दोलन करनेवाले लोग विरोध शुरू करेंगे| और प्रजासत्ता है- हर कोई कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है| कानून और व्यवस्था की सिस्टिम हो तो भी वह इतनी बड़ी आबादी के सामने छोटी पड़ जाती है| लेकिन अगर सभी लोगों का हित देखना हो; तो कुछ निर्बन्ध तो रखने ही होंगे| अगर पेड़ को उपर बढ़ाना है, तो उसके विस्तार को कम करना होता है| अराजक नही मान्य किया जा सकता है और आज हम जो पर्यावरण के साथ कर रहे हैं, वह भी अराजक ही है| देखा जाए तो हमे भी पता होता है| आज हम धीरे धीरे समझ रहे हैं कि पानी का मूल्य क्या है| जल्द ही हम पेड़ों का मूल्य भी समझने लगेंगे|

लेकिन ये सभी बातें आगे जा कर बहुत जटिल हो जाती हैं| जैसे उपर उपर से देखने पर लग सकता है कि साईकिल कितनी इको फ्रेंडली है| लेकिन उसमें भी बहुत से अंडर करंटस होते हैं| साईकिल चलाना इको फ्रेंडली होता भी है, लेकिन क्या साईकिल बनाने में प्रदूषण नही होता है? इस तरह के अंडरकरंटस बहुत ज्यादा होते हैं और इसलिए हमें बहुत ज्यादा सजग रहना चाहिए| सिर्फ उपर से दिखनेवाला ही नही, उसकी पर्तों के भीतर जो हैं, वह भी देखने की कोशिश करनी चाहिए| और उसके लिए हमारे जीवन में भी अप्रिय लगनेवाले बदलाव करने चाहिए| जैसे इन्सान का प्रकृति पर बर्डन कम करने के लिए जनसंख्या कम करने के साथ ही जनसंख्या को एक ही जगह इकठ्ठा होने से रोकना भी चाहिए| जैसे भारत के सभी मेट्रो सिटीज आज एक्स्झॉस्ट हो चुके हैं| और वहाँ रह रहे इन्सानों के जीवन में भी अत्यधिक तनाव है| और सभी लोग आ कर एक ही शहर में बसें यह बात बिल्कुल भी क्रिएटिव नही है| इसलिए विकास का मॉडल कुछ चुनिन्दा शहरों में सब लोग आने के बजाय ऐसे शहर और विकसित गाँव हर तरफ बढ़ें, तैयार हो, यह होना चाहिए| और यह हो कर रहेगा| क्यों कि धीरे धीरे मेट्रोज बन्द होते जा रहे हैं| नई आबादी वहाँ आ ही नही सकती हैं| रही बात रोजगार के और विकास के अवसर अन्य सभी जगह तैयार करने की- यह भी हर रोज सम्भव और सरल होता जा रहा है|


सूर्यास्त या सूर्योदय?



आज हम उस स्थान पर हैं जहाँ एक तरफ हमारे पास सब तरह की चुनौतियाँ हैं, सब तरह के तनाव हैं और सब तरह के संकट भी| लेकिन इसके साथ हमारे पास हर समस्या के लिए उपाय भी हैं| आज हमारे पास तकनिक है और विज्ञान है| अगर हम थोड़ी सी समझ दिखा सके, तो विज्ञान के सहारे इस पूरी समस्या का समाधान भी प्राप्त कर सकते हैं| आज विज्ञान, इंटरनेट, मोबाईल क्रान्ति के ज़माने में मेट्रो सिटीज पर होनेवाली निर्भरता धीरे धीरे कम हो रही है| जब पूरी पृथ्वी एक छोटा गाँव जैसा बन गई हो, तब दूर दराज के इलाकों में भी विकास की रोशनी निकल सकती है| थोडी सजगता और थोडी समझ हो, तो हम असमान विकास को दूर तक फैला भी सकते हैं| और यही बात पर्यावरण के सम्बन्ध में भी है| आज मनुष्य के कारण कितनी ही प्रजातियाँ नष्ट होने के कगार पर पहुँच गई हो, मनुष्य ही उन्हे बचा भी सकता है| आज इन्सान के पास वह तकनिक हैं, वह संसाधन हैं जिनसे पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है| क्यों कि चीजें कभी अलग- अलग नही होती हैं| अगर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने का विज्ञान हासिल किया गया है, तो वही विज्ञान उसे बचाने में भी काम आ सकता है| आज के ज़माने में अगर युवा पिढी के सामने कई सारे डिस्ट्रॅक्शन्स और कृत्रिम चीजें आ भी गई हो, तो उसके साथ उसी विज्ञान ने आज युवा पिढी को ज्ञान का बहुत बड़ा भण्डार भी दे दिया है| ज़रूरत तो है बस थोड़ी सी समझबुझ और सजगता की| फिर हम हमारी दिशा आसानी से बदल सकते हैं| इसलिए पर्यावरण की रक्षा का सबसे बड़ा कदम इन्सान की समझ और सजगता बढ़ाना होगा| उसकी चर्चा अगले भाग में करते हैं|

अगला भाग: प्रकृति, पर्यावरण और हम ११: इन्सान ही प्रश्न और इन्सान ही उत्तर

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