Wednesday, May 26, 2010

A script for a street play for adolescent girls

Introduction:


This script is written for a street-play on menstruation related issues. The street play is planned for rural and tribal audience.This street play has the following objectives.

Objectives of the street play:

1. To create awareness about menstruation as a fact in the society.

2. To reduce stigma and inhibitions associated with menstruation.

3. To help the adolescent girls (mainly in rural and tribal areas) for better adjustment with their physical and psychosocial conditions by stressing the need for open dialogue regarding menstruation.

The street play tries to fulfill these objectives by presenting a real life situation; which is helpful for creating stimulus and insights.

Preparation of the script:

The following is a basic outline of the script. It presents the basic content of the script. Ideally the script should evolve from the ideas and interactions of the performers who present the street-play. The following can be a guideline for them.





दृश्य 1: रानी लक्ष्मीबाई कन्या विद्यालय मे वार्षिक समारोह – गॅदरिंग की तैयारी जोर शोर से चल रही है । कार्यक्रम के आयोजन मे सम्मीलित छात्राएं साथ में मिलकर काम कर रही है । उनके साथ उनकी अध्यापिका भी है ।



मनीषा: चलो, चलो दोस्तों, जल्दी से ये काम भी निपटा देते है । उसके बाद हम हमारे पॉप म्युझिक के प्रोग्राम के लिए अरेंजमेंट करेंगे ।

सुनीता: हाँ जी, बस एक बार ये सब हो जाय । अभी हमको स्टेज डेकोरेशेन के लिए क्या करना होगा ?

कल्पना: अभी तो थर्मोकॉल लाना है, दिवार पर बॅनर लगाना है, उसके उपर कुछ चित्र लगाने है, नीचे डालने के भी कुछ लाना पडेगा ना ।

निहारिका (अध्यापिका): कल्पना, उसके लिए मै रामूचाचा को बोल दुंगी, वो हमें ला देंगे ।

मनीषा: दीपिका, देखो जरा माईक लग गया क्या ? अभी हमको एक रिहर्सल करनी होंगी ।

दीपिका (माईक के पास जाकर उँचे आवाज में तथा अलग ढंग से): हॅलो, हॅलो ! साहेबान, मेहेरबान, कद्रदान, आप सबका स्वागत है ! आज हम हमारी प्यारी दोस्तों के साथ स्कूल में वार्षिक समारोह का पहला परफॉर्मन्स शुरू करने जा रहे है । (मुस्कुराते हुए) मै आमंत्रित करती हुँ मनीषा को की वो अपना परफॉर्मन्स प्रस्तुत करें ! प्लीझ वेलकम, मिस मनीषा ! (छात्राएं तालियों से उसका उत्साह बढाते है ।)



मनीषा (माईक हाथ में लेकर): हॅ....लो एव्हरीबडी ! गुड एव्हिनिंग ! लिजिए, आपके सामने मेरा ये गाना - “ आज मै उपर, आसमाँ नीचे, आज मै आगे, ज़माना है पीछे ! ”

दीपिका: चलिए जी, माईक भी रेडी और आपकी तैयारी भी रेडी !

मनीषा: येस बॉस ! (संगीता के पास आकर) क्या बात है संगीता, तुम्हे नही अच्छा लगा मेरा गाना ?

संगीता: नही; आपने अच्छा गाया ।

मनीषा: पर तुम मुस्कुरायी नही; तुमने देखा भी नही ।

संगीता: नही तो, मेरा ध्यान शायद कहीं और था ।

मनीषा: अच्छा ? चलो. चलो, अब तुम तुम्हारा डांस कर के दिखाओ ।

संगीता: मनीषा, मै अभी तैयार नही हुँ । अभी नही करना मुझे ।

मनीषा: क्यों, क्यों नही करना ? देखो, मैने कैसे तुरंत कर दिया । अभी एक बार कर लेती हो; तो तुम्हारा विश्वास बढेगा ना.

संगीता: नही, रहने दो ना, मुझे अभी नही करना । मै बाद में करूंगी ।

मनीषा: चलो, ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्जी । पर अभी नही तो कब करोगी ?

संगीता: मै इस संडे को करूंगी । चलेगा ना ?

मनीषा: ठीक है संगीता ।

रश्मी: सुनीता, हमारी अभी की तैयारी पूरी हो गई है । क्या हम अपनी पहली रिहर्सल शुरू कर सकते है ?

सुनीता: जी हाँ ! चलो चलो, अब हमारे पॉप म्युझिक की रिहर्सल शुरू हो रही है । चलो, अब हमारा पॉप म्युझिक शो शुरू हो रहा है ।

निहारिका (अध्यापिका): चलो, अब मै चलती हुँ, मुझे ऑफिस मे कुछ काम है । आप और करना । बाकी लोग इनका परफॉर्मन्स ज़रूर देखना और इनको बताना !

दीपिका (मुस्कुराते हुए): थँक यू मॅडम !

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दृश्य 2

(प्रॅक्टिस समाप्त होने के बाद मनीषा और संगीता साथ निकलते हुए)

मनीषा: संगीता, अभी आप कहाँ जा रही है ?

संगीता: मै घर जा रही हुँ । आप कहाँ जा रही है ? कुछ देर बात करेंगे ?

मनीषा; मै भी घर जा रही हुँ । चलो; थोडी देर यहाँ बैठते है ।

संगीता: आप मुझसे बडे क्लास में हो कर भी मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो । मुझे आपसे कुछ पूछना है । मुझे आज बहोत उदास, थका हुआ लग रहा है । मैने काम तो ज्यादा नही किया, पर मुझे बहोत थकान महसूस हो रही है, और क्यों यह समझ मे नही आ रहा है । इससे मै परेशान हुँ ।

मनीषा: संगीता ! यह बहोत स्वाभाविक है । इसका अर्थ यही है की आपकी माहवारी शुरू हो रही है ।

संगीता: क्या ? मैने तो अब तक उसके बारे में सिर्फ सुना था ।

मनीषा: अभी आप 12 साल की हो । उस उम्र से माहवारी शुरू हो सकती है । जब भी पहले बार होती है; सबको ऐसे ही लगता है । जब भी हमारी माहवारी शुरू होती है, उस समय हम अस्वस्थ होते है, खून बह जाने से थकान भी महसूस करते है । अभी आपके लिए यह नया है, इसलिए आप परेशान हो । जैसे जैसे समय बीतेगा, इसकी आपको आदत पडेगी और आपको यह तकलीफ नही होगी ।

संगीता: आपको भी ऐसा हुआ था ?

मनीषा: हाँ, बहोत । अभी भी कभी कभी होता है । ये होना बहोत स्वाभाविक है । इसमें परेशान होने की, इसको गलत मानने की तथा इसको छिपाने की जरूरत नही है ।

संगीता: इसमें क्या क्या होता है ?

मनीषा: इस प्रक्रिया में लगातार 3 दिन तक खून निकलता है । चिडचिडापन, थकान तथा अस्वस्थता होती है । पर धीरे धीरे हमे इसकी आदत पड जाती है और फिर इससे ज्यादा तकलीफ नही होती ।

संगीता: मेरे घर में भी जब मम्मी को पता चलता है, तब वह मुझे एक जगह रूकने के लिए कहती है । इधर उधर जाने नही देती और नजर से बाहर नही जाने देती ।

मनीषा: जहाँ तक आपकी मम्मी की बात है, वो बस आपका खयाल रखती है, यही चाहती है की आपको कुछ तकलीफ ना हो । हो सकता है कि उनके मन में अन्धविश्वास भी हो । अगर इससे बहोत ज्यादा घूटन सी होती है, तो आपको उन्हें बताना पडेगा । और कब तक हम इस चीज की वजह से अपने आप को एक जगह बंद रखेंगे ? इतनी सारी लडकिया और औरतें इतने सारे काम तो करतीही रहती है । सबके साथ ऐसा ही होता है । आपको इस बात को समझना है और उसका स्वीकार करना है ।

संगीता: कैसे क्या, मै तो कुछ नही जानती !

मनीषा: बहुत अच्छे से तो मै भी नही जानती । मगर इसी लिये तो विद्यालय में शरिर ज्ञान पर क्लासेस लेते है । अगर हम कुछ नही जानते; तो हमको जानने की जरूरत है । हमको जानना है की माहवारी क्या है, उसमें क्या होता है, क्यों होता है और उसमें किस बात की निगाह रखने की जरूरत है । ये सब हमारे क्लास में बताया जाता है । मै तो इतना जानती हुँ की स्त्रियों की स्त्री होने की विशेषता के कारण यह होता है । यह क्रिया स्त्री की प्रजा उत्पन्न करने की क्षमता का हिस्सा है । संभवत: 12-13 साल से 45 साल तक की महिलाओं को इसका अनुभव होता है । जन्म की समय से हमारे शरिर में बीजाशय होते है; जो किशोरावस्था में आने पर परिपक्व हो जाते है । इन्हे सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखा जा सकता है । और हर माह में (28 दिन पश्चात) बीज उत्पन्न होता है और बीजाशय से बाहर आता है । बीजाशय के पास होनेवाला बीजनली का चौडा भाग उसे सोख लेता है । वहाँ से वह धीरे धीरे अंडनलिका से होते हुए गर्भाशय में आता है । गर्भाशय में खून से बनी गद्दे मे यदि उसका फलन नही हुआ तो वो नष्ट होता है और शरिर से निकाला जाता है । इसी कारण योनीभाग में खून निकलता है । हमें क्लास में इसके चित्र दिखाए जाएंगे । हमारे क्लास के अलावा गांव की आशा दिदी से भी जानकारी ली जा सकती है । ................. (इस प्रकार मनीषा संगीता को माहवारी के बारे में विस्तार से समझाती है ।)

संगीता: अच्छा... समझ रही हुँ । बडी औरतों को इसके बारे में ख्याल रखते हुए देखा था ।

मनीषा: तो इसी समझ को आगे बढाना है । और सबसे बडी बात यह, की इसे बुरा, गलत, गंदा नही मानना है । यह बात अत्यंत नॉर्मल है, सब इसका अनुभव करते है । जैसे हम शरीर के हाथ को बुरा या गंदा नही मानते; तो क्यों खून को, प्रजनन अंगों को गंदा मानें ? अगर हमारे मन में गंदेपन की, डर की भावना है, तो इसे निकालना जरूरी है । शरिर को साफ एवं सुरक्षित रखने के लिए साफ सुती कपडा या पॅड का उपयोग करना जरूरी है । इसे धोना और अच्छे से सुखाना भी जरूरी है । इसे सुखाने के लिए छिपाने की जरूरत नही है; क्यों कि इसमे गंदा कुछ भी नही है । शरिर के अंगों को भी बिना झिझक के नियमित रूपसे धोना चाहिए । इस समय परेशानी तो जरूर होती है, दर्द भी होता है । पर उसे गंदा मानने के बजाय उसे स्वाभाविक मानने से उसे ठीक से सह सकते है । उसको मॅनेज करने में भी हमको मदद मिलेगी यदि हम उसे स्वाभाविक तरिके से देखें । यह बात, यह प्रक्रिया किसी भी तरह की पाप, गंदेपन से नही होती है बल्कि निसर्गत: होती है, हम इसका नियंत्रण नही कर सकते । यह हमको समझना होगा और औरों को भी समझाना होगा ताकि वो हमें तकलीफ पहुंचने का माध्यम न बनें । देखो संगीता, यदि कोई खुद ही इससे शर्माती है, खुद को बुरा मानती है, तो उसको और ज्यादा तकलीफ होंगी । जितना हम इसके बारे में खुल कर बात करेंगे, इसका स्वीकार कर चलेंगे, हमें आसानी होंगी ।

संगीता: आसानी कैसे क्या ? दर्द थोडेही कम होगा ?

मनीषा: अच्छा सवाल । अभी जैसे मै आपसे पूछ रही थी, आपको बोल रही थी । आप मन में अस्वस्थ थी, इसिलिए बोल नही पाई । आप कॉन्फिडेंट हो कर मुझे कह सकती थी, की अभी आपका शरिर स्वस्थ नही है, इसिलिए आप यह करना नही चाहती । जैसे अगर आपके पैर में चोट हो, तो आपको कौन भागने को कहेगा । हो सकता है, कि कुछ लोग इस बात को आसानी से नही समझ सकेंगे । फिर भी हमको उनको समझाना पडेगा । नही तो उनके बहन को, उनकी बेटी को इसी तरह की तकलीफ होने का माध्यम वे बन जायेंगे ।

संगीता: सही है ।

मनीषा: इसिलिए इस पर खुल कर चर्चा होनी जरूरी है । जितना ज्यादा लोग इसे समझेंगे, उतनी परेशानी कम होगी । किसी भी लडकी को उसकी माहवारी की वजह से उसका काम बिगडने का या परफॉरमन्स बिगडने का टेंशन नही होना चाहिए । क्यों कि ऐसा होता नही है । कितनी सारी लडकिया तथा औरतें कितने कष्ट के काम हमेशा करती रहती है । सबने इसे जानना चाहिए । इस तरह की समझ बढती है, तो हमारी पीडा तो नही; पर उससे होने वाली परेशानी जरूर कम हो सकती है । मुझे खुशी है की आप इसे समझती हो । मै चाहती हुं की हमारे शरिर-ज्ञान क्लास में हम सब इसपर खुल कर बात करें ताकि सब भी हमसे इसे समझ सकें !

माहवारी कोई कलंक नही है । प्रकृति द्वारी स्त्रियोंपर सौंपी गई विशेष प्रकार की जिम्मेदारी है । जिम्मेदारी के साथ कठिनाईया तथा मुसीबतें भी आती है । पर जैसे कहाँ गया है – Responsibility is the cost of greatness – यानी जिम्मेदारी बडे होने की किमत है, एक निशानी है । प्रकृति द्वारा यह विशेषता स्त्रियों को दी गई है । कितनी विशेष तथा सुकून देनेवाली बात है । जो कोई भी आदमी नही कर सकता; वो हम स्त्री होने के नाते कर सकते है ! हम उनसे अलग है । क्यों ना हम इस अलग पहचान को एंजॉय करें ?

संगीता: जी, मै मानती हुँ ।

मनीषा: चलिए, सभी साथ में आईए ।

(सभी सहेलीयाँ साथ आकर कहती है) “ सबके साथ जानने की चाह यहीं है जीने की सही राह !”

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